हिंदू परंपरा में विवाह का नाम नारी के सम्मान से |

हिंदू परंपरा में विवाह : को एक सांस्कृतिक और आध्यात्मिक उत्सव भी माना जाता है। इसलिए भगवान राम का विवाह सीता कल्याण कहलाता है और भगवान शिव का विवाह पार्वती कल्याण कहलाता है, न कि राम कल्याण या शिव कल्याण। हमारे पुराणों में उल्लिखित गहरे धार्मिक, दार्शनिक और सामाजिक कारण इसके पीछे हैं।

हिंदू परंपरा में विवाह

1. नारी तत्त्व की प्रधानता

हिंदू धर्म में स्त्री को सृष्टि की शक्ति माना जाता है।
ब्रह्मवैवर्त पुराण में कहा गया है कि माता (प्रकृति) की महिमा पिता (पुरुष तत्त्व) की महिमा से सौ गुना अधिक है

यही कारण है कि शास्त्रों में भी स्त्रियों को पहले नाम दिया गया है, जैसे राधा-कृष्ण गौरी-शंकर

पुरानी परंपरा बताती है कि शिव बिना शक्ति के भी निष्क्रिय होते हैं।

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2. माता के रूप में एक महिला का सम्मान

 हिंदू धर्म में नारी को सिर्फ पत्नी नहीं, बल्कि माता और जगत की जननी भी मानते हैं।
सीता और पार्वती दोनों देवियाँ हैं, दोनों को पूजा जाता है।

रामायण में सीता को धर्म और अद्भुत पतिव्रता का प्रतीक बताया गया है।
शिव पुराण में पार्वती की तपस्या और त्याग का बहुत कुछ बताया गया है।

इसलिए विवाह का नाम उनके नाम पर रखा गया, ताकि समाज में नारी के आदर्श गुणों को स्थापित किया जा सके।

3. नारी की विशेषताओं का सम्मान

सीता और पार्वती ने अपने जीवन में आदर्श स्थापित किए और केवल विवाह की पात्र थीं |
सिफारिश: सहनशीलता, सत्य और त्याग का प्रतीक

पावर्ती: तपस्या, धैर्य और अटूट श्रद्धा का उदाहरण

वाल्मीकि रामायण और शिव महापुराण में इनके चरित्र को नारीशक्ति का सर्वोच्च रूप बताया गया है।
विवाह को उनके नाम से जोड़ना उनके गुणों का सम्मान है।

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4. कन्या पक्ष की प्रशंसा

हिंदू विवाह परंपरा में, कन्या के माता-पिता को विवाह का आयोजक माना जाता है।
वे ही विवाह का आयोजन करते हैं और वर पक्ष को आमंत्रित करते हैं |

इसलिए विवाह का नाम कन्या के नाम पर रखना, उनके परिवार का सम्मान करना है और उनका योगदान मानना है।
यह परंपरा महिलाओं को समाज में अधिक सम्मान देती है।

आत्मा और परब्रह्म का एकीकरण

पुराणों ने कहा कि विवाह आत्मा और परमात्मा का एकीकरण है, नहीं सिर्फ शरीर का।

देवी जीवात्मा का प्रतीक है, और भगवान परमात्मा का।
सीता की निष्ठा और पार्वती की कठोर मेहनत इस आध्यात्मिक यात्रा को दर्शाती हैं।

इसलिए विवाह का नाम देवी के नाम पर रखा गया, जिससे उनकी साधना और समर्पण महत्वपूर्ण थे।

5. अर्धनारीश्वर के प्रति भावना

शिव पुराण में अर्धनारीश्वर स्वरूप का उल्लेख है, जिसमें शिव और शक्ति को एक समान बताया गया है।
यह बताता है कि पुरुष और नारी एक-दूसरे के बिना पूरे नहीं हैं।
नाम सीता कल्याण और पार्वती कल्याण दोनों एकता और समानता का प्रतीक हैं।


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