Alopi devi mandir माता के अलौकिक स्वरूप की अनोखी कहानी

Alopi devi mandir : प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) के अलौपीबाग में स्थित अलौपी देवी मंदिर, अलोपशंकरी शक्तिपीठ के नाम से भी जाना जाता है, एक महान धार्मिक स्थान है।
पवित्र गंगा, यमुना और पौराणिक सरस्वती नदियों के संगम के पास यह मंदिर है।

Alopi devi mandir

Alopi devi Mandir पौराणिक कथाएँ और विचित्र घटनाएँ

यहाँ माता सती का दाहिना हाथ (पंजा) गिरा था।
“अलौपी” शब्द का अर्थ है “लोप”, जिसका अर्थ है गायब होना।
स्थानीय कथा कहती है कि एक समय था जब इलाका घने जंगलों से घिरा हुआ था। वहाँ विवाह की बारात चल रही थी, लेकिन डोली (झूले) का पर्दा अचानक हट गया, तो दुल्हन नहीं थी। उसके शरीर का कोई भी भाग उसके पास नहीं था।
ने बताया कि इसी दिन दुल्हन को “अलौपी देवी” के रूप में पूजना शुरू किया गया था।

  • पौराणिक कथाओं में कहा गया है कि देवी सती का शरीर विष्णु के चक्र से कई जगह बिखर गया था और हर जगह शक्तिपीठ बन गया था।

Bahuchara mata बहुचरा माता Mandir History.

मंदिर का निर्माण और पूजा प्रथा

  • अलौपी देवी मंदिर में कोई मूर्ति नहीं है।
  • तालाब के ऊपर एक चांदी के मंच पर एक लकड़ी का झूला (डोली) देवी का प्रतीक है।
  • भक्त इस झूले को देवी का प्रतिनिधि मानकर पूजा करते हैं।
  • मंदिर के प्रांगण में एक तालाब है, जहाँ श्रद्धालु पूजा के दौरान रक्षा सूत्र बाँधते हैं। माना जाता है कि माता जब तक यह सूत्र बंद रहेगा, उनकी सुरक्षा करती रहेगी।

ऐतिहासिक अर्थ

इतिहासकारों का कहना है कि मराठा योद्धा श्रीनाथ महादजी शिंदे के प्रयागराज प्रवास के दौरान यह मंदिर फिर से बनाया गया था।
1800 के दशक में, महारानी बैजाबाई सिंधिया ने इस मंदिर और उसके आसपास के संगम घाटों को सुधार दिया।

नजदीकी पर्यटन स्थान

संगमस्थल: यह मंदिर संगम में है, जहाँ सरस्वती, यमुना और गंगा मिलती हैं।
कुंभ मेला स्थान: मंदिर बड़े धार्मिक उत्सवों, खासकर कुंभ मेले में, श्रद्धालुओं के लिए एक बड़ा आकर्षण बनता है।

अंतर — बंग्लोर से

दक्षिण भारत के बेंगलुरु से लगभग 1,750–1,800 किलोमीटर दूर प्रयागराज (इलाहाबाद) में अलौपी देवी मंदिर है। (यह दूरी मोटे अनुमान पर आधारित है— रास्ते और रास्ता चुनने के अनुसार बदल सकती है।)

Leave a Comment

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *

Scroll to Top