युगादि 2025 : नववर्ष का शुभारंभ, नई उमंग और नई आशाएं!

युगादि 2025

दक्षिण भारत के राज्यों, जैसे कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और गोवा में युगादि, जिसे उगादि या युगाडी भी कहा जाता है, नववर्ष को उत्साहपूर्वक मनाया जाता है। हिन्दू पंचांग के अनुसार, यह पर्व चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाया जाता है, जो अक्सर मार्च या अप्रैल में आता है। यह दिन नए संवत्सर की शुरुआत है, जो जीवन में नए उत्साह और उम्मीदों का प्रतीक है।

युगादि 2025 की तिथि और शुभ मुहूर्त

2025 में रविवार, 30 मार्च को युगादि पर्व मनाया जाएगा। प्रतिपदा तिथि 29 मार्च 2025 को दोपहर 4:27 बजे शुरू होगी और 30 मार्च 2025 को दोपहर 12:49 बजे समाप्त होगी।

युगादि 2025

पंचांग लिंक

युगादि पर्व के दिन पंचांग श्रवण की परंपरा है, जिसमें ग्रह-नक्षत्रों की स्थिति और भविष्यवाणियों को सुना जाता है, जो नए वर्ष में होगा। द्रिक पंचांग अधिक जानकारी देता है।

युगादि उत्सव का ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व

संस्कृत शब्द “उगादि” का अर्थ है “नए युग की शुरुआत” और दो शब्दों “युग” (युग या काल) और “आदि” (शुरुआत)। दक्षिण भारत में, यह पर्व हिंदू नववर्ष के रूप में मनाया जाता है, जो भगवान ब्रह्मा द्वारा सृष्टि का दिन है।

  1. अतीत और ऐतिहासिक संदर्भ हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार, भगवान ब्रह्मा ने सृष्टि को युगादि के दिन शुरू किया था। चंद्र पंचांग के अनुसार, आज से नए संवत्सर का आरंभ होता है।
  2. रामायण और युगादि युगादि भी भगवान राम के जीवन से जुड़े हुए हैं। इसी दिन भगवान श्रीराम को अयोध्या का राजा और राज्याभिषेक दिया गया था। इसलिए इसे शुभ दिन माना जाता है।
  3. महाभारत और युगादि में भी युगादि का उल्लेख है। माना जाता है कि इसी दिन भगवान कृष्ण ने पांडवों को कलियुग के परिणामों से अवगत कराया और धर्म की पुनःस्थापना का रास्ता दिखाया।
  4. शालिवाहन संवत्सर की शुरुआत: इस दिन शालिवाहन संवत्सर की शुरुआत मानी जाती है, जो एक और ऐतिहासिक घटना है। शालिवाहन वंश का महान सम्राट गौतमीपुत्र शातकर्णी ने विदेशी आक्रमणकारियों को पराजित करके शालिवाहन संवत्सर शुरू किया |
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युगादि 2025 पूजा विधि

प्रातःकाल स्नान करना तैलाभ्यंग (तेल मालिश) करके उबटन करके स्नान करें। नए या स्वच्छ कपड़े पहनें।

घर सफाई करें— मुख्य द्वार पर आम के पत्तों की तोरण (बंदनवार) लगाने के बाद पूरे घर को साफ करें।

रंगोली बनाओ— घर को सुंदर रंगोली से सजाओ।

पूजास्थल को साफ करें— मंदिर या पूजा स्थल को साफ करके भगवान की मूर्ति या चित्र को स्थापित करें।

कलश बनाएँ— तांबे या पीतल के कलश में जल भरकर पूजा स्थान पर आम के पत्ते और नारियल डालें।

भगवान ब्रह्मा, विष्णु और लक्ष्मी की पूजा करें— भगवान को पुष्प, धूप, चंदन और अक्षत (चावल) अर्पित कर दीपक जलाएं।

पंचांग सुनें— नए वर्ष के ग्रह-नक्षत्रों और भविष्यफलों को सुनें या पढ़ें।

योगी पच्चड़ी का भोजन करें— भगवान को गुड़, इमली, कच्चा आम, मिर्च, नमक, नीम के पत्ते और पच्चड़ी अर्पित करें।

आरती करो— परिवार के सभी लोग मिलकर प्रार्थना करें और भगवान की आरती गाएं।

दान दें और आशीर्वाद लें— बड़ों का आशीर्वाद लें और पूजा के बाद प्रसाद ग्रहण करें।

विशिष्ट: इस दिन दान-पुण्य करना और गरीबों को मदद करना शुभ है।

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