भगवद गीता अध्याय 1 – अर्जुन विषाद योग (संपूर्ण श्लोक हिंदी अर्थ सहित)
भगवद गीता अध्याय 1, “अर्जुन विषाद योग”, युद्ध के मैदान में अर्जुन की पीड़ा बताता है। अर्जुन विचलित हो जाते है |और श्रीकृष्ण से अपनी परेशानियों को बताते है जब वह अपने ही परिवार, गुरु और दोस्तों को युद्धभूमि में देखते है।
हम इस अध्याय के 47 श्लोक को चरणबद्ध रूप से समझेंगे।

अध्याय 1 के प्रमुख भाग
- धृतराष्ट्र का प्रश्न (श्लोक 1)
- दुर्योधन की चिंता और सेना का वर्णन (श्लोक 2-11)
- युद्ध की घोषणा और शंखनाद (श्लोक 12-19)
- अर्जुन का विषाद और श्रीकृष्ण से प्रश्न (श्लोक 20-47)
भगवद गीता अध्याय 1 – अर्जुन विषाद योग Listen it on Youtbe Credit Goes To Saregama Bhakti
भगवद्गीता अध्यायवार सार (18 अध्याय)
1. धृतराष्ट्र का प्रश्न (श्लोक 1)
धृतराष्ट्र उवाच:
धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः।
मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत सञ्जय॥1॥
अर्थात्:
धृतराष्ट्र ने संजय से पूछा कि कौरवों और पांडवों ने धर्मभूमि कुरुक्षेत्र में युद्ध की इच्छा से एकत्र होकर क्या किया?
2. दुर्योधन की चिंता और सेना का वर्णन (श्लोक 2-11)
श्लोक 2:
संजय उवाच:
दृष्ट्वा तु पाण्डवानीकं व्यूढं दुर्योधनस्तदा।
आचार्यमुपसंगम्य राजा वचनमब्रवीत्॥2॥
अर्थात्:
संजय ने कहा, दुर्योधन ने पांडवों की सेना को विभाजित देखकर अपने गुरु द्रोणाचार्य से कहा।
श्लोक 3:
पश्यैतां पाण्डुपुत्राणामाचार्य महतीं चमूम्।
व्यूढां द्रुपदपुत्रेण तव शिष्येण धीमता॥3॥
अर्थात्:
हे आचार्य! देखो, धृष्टद्युम्न, आपके बुद्धिमान शिष्य, ने पांडवों की इस बड़ी सेना को कैसे एकजुट किया है।
श्लोक 4 (महारथियों का वर्णन)
अत्र शूरा महेष्वासा भीमार्जुनसमा युधि।
युयुधानो विराटश्च द्रुपदश्च महारथः॥4॥
पूरी तरह से अर्थ:
इस (पांडव) सेना में युयुधान (सात्यकि), विराट और महारथी द्रुपद हैं, जो भीम और अर्जुन के समान वीर, महान धनुर्धर योद्धा हैं।”
विशिष्ट तथ्य:
श्रीकृष्ण के चचेरे भाई युयुधान (सात्यकि) थे।
द्रौपदी और धृष्टद्युम्न , दुरुपद के पुत्र थे।
श्लोक 5 (कौरव सेना के योद्धा)
धृष्टकेतुश्चेकितानः काशिराजश्च वीर्यवान्।
पुरुजित्कुन्तिभोजश्च शैब्यश्च नरपुङ्गवः॥5॥
पूरी तरह से अर्थ:
हमारे पास धृष्टकेतु, चेकितान, वीर काशिराज, पुरुजित, कुन्तिभोज और श्रेष्ठ मनुष्य शैब्य भी हैं।”
विशिष्ट तथ्य:
पांडवों की माता कुंती के पिता कुन्तिभोज थे।
श्लोक 6 (अन्य महारथी)
युधामन्युश्च विक्रान्त उत्तमौजाश्च वीर्यवान्।
सौभद्रो द्रौपदेयाश्च सर्व एव महारथाः॥6॥
पूरी तरह से अर्थ:
महान रथी हैं वीर युधामन्यु, वीर्यवान उत्तमौजा, अभिमन्यु और द्रौपदी के पुत्र।”
विशिष्ट तथ्य:
उस समय अभिमन्यु सिर्फ 16 वर्ष का था, लेकिन उसे महान योद्धा माना जाता था
श्लोक 7:
अस्माकं तु विशिष्टा ये तान्निबोध द्विजोत्तम।
नायका मम सैन्यस्य संज्ञार्थं तान्ब्रवीमि ते॥7॥
अर्थ: “हे ब्राह्मणश्रेष्ठ (द्रोणाचार्य)! अब हमारी सेना के प्रमुख योद्धाओं को सुनिए।” ताकि आप उन्हें पहचान सकें, मैं आपको उनके नाम बताता हूँ।”
श्लोक 8:
भवान्भीष्मश्च कर्णश्च कृपश्च समितिञ्जयः।
अश्वत्थामा विकर्णश्च सौमदत्तिस्तथैव च॥8॥
अर्थ:“आप स्वयं (द्रोणाचार्य), भीष्म पितामह, कर्ण, कृपाचार्य, अश्वत्थामा, विकर्ण और भुरिश्रवा (सौमदत्ति) हमारे प्रमुख योद्धा हैं।”
श्लोक 9:
अन्ये च बहवः शूरा मदर्थे त्यक्तजीविताः।
नानाशस्त्रप्रहरणाः सर्वे युद्धविशारदाः॥9॥
अर्थात्: इनके अलावा भी कई वीर योद्धा मेरे लिए मरने को तैयार हैं। ये सभी अनेक प्रकार के हथियारों को नियंत्रित करने में माहिर हैं और युद्ध में भी अच्छे हैं।”
श्लोक 10:
अपर्याप्तं तदस्माकं बलं भीष्माभिरक्षितम्।
पर्याप्तं त्विदमेतेषां बलं भीमाभिरक्षितम्॥10॥
अर्थ: “भीष्म पितामह के संरक्षण में हमारी सेना अजेय है, जबकि भीम के संरक्षण में पांडवों की सेना सीमित है।”
श्लोक 11:
अयनेषु च सर्वेषु यथाभागमवस्थिताः।
भीष्ममेवाभिरक्षन्तु भवन्तः सर्व एव हि॥11॥
अर्थात्: सब योद्धा अपने-अपने मोर्चों पर खड़े रहें और भीष्म पितामह की पूरी तरह से आज्ञा का पालन करें।”
3. युद्ध की घोषणा और शंखनाद (श्लोक 12-19)
श्लोक 12:
ततः श्वेतैर्हयैर्युक्ते महति स्यन्दने स्थितौ।
माधवः पाण्डवश्चैव दिव्यौ शङ्खौ प्रदध्मतुः॥12॥
अर्थात्:
तब श्रीकृष्ण (माधव) और अर्जुन ने श्वेत घोड़ों से सजे बड़े रथ पर दिव्य शंख बजाया।
श्लोक 13–19 में भीष्म, द्रोण और युधिष्ठिर के शंखनाद का वर्णन है।
श्लोक 13:
ततः शङ्खाश्च भेर्यश्च पणवानकगोमुखाः।
सहसैवाभ्यहन्यन्त स शब्दस्तुमुलोऽभवत्॥13॥
अर्थात्: “फिर एक साथ शंख, नगाड़े, तुरहियाँ और डंके बजाए गए, जिससे भयंकर शोर हुआ।”
योग्यता:
युद्ध से पहले की घोषणा इस श्लोक में बताई गई है। सेना का साहस शंखनाद से बढ़ा।
श्लोक 14:
ततः श्वेतैर्हयैर्युक्ते हृषीकेशे धनञ्जये।
भूमिदेवस्य पुत्रस्य शङ्खदुन्दुभिनिस्वनः॥14॥
अर्थात्: सफेद घोड़ों से जुते रथ पर बैठे हृषीकेश (कृष्ण) और धनंजय (अर्जुन) तथा कुंतीपुत्र (भीम) के शंख और नगाड़ों की ध्वनि गूंज उठी।”
श्लोक 16-18: (भीम, घटोत्कच आदि के शंख)
श्लोक 16:
काश्यश्च परमेष्वासः शिखण्डी च महारथः।
धृष्टद्युम्नो विराटश्च सात्यकिश्चापराजितः॥16॥
पूर्ण अर्थ: “काशीराज (परम धनुर्धर), महारथी शिखण्डी, धृष्टद्युम्न, राजा विराट और अजेय योद्धा सात्यकि ने भी अपने-अपने शंख बजाए।”
विशेष तथ्य: शिखण्डी पूर्वजन्म में अम्बा थी जिससे भीष्म ने विवाह नहीं किया था।
धृष्टद्युम्न द्रोणाचार्य के वध के लिए अग्नि से उत्पन्न हुआ था।
श्लोक 17:
द्रुपदो द्रौपदेयाश्च सर्वशः पृथिवीपते।
सौभद्रश्च महाबाहुः शङ्खान्दध्मुः पृथक्पृथक्॥17॥
पूर्ण अर्थ: “हे राजन! द्रुपद, द्रौपदी के पुत्र और महाबाहु अभिमन्यु ने भी अपने-अपने शंख अलग-अलग बजाए।””
महत्वपूर्ण तथ्य: उस समय अभिमन्यु सिर्फ 16 वर्ष का था, लेकिन उसे महान योद्धा माना जाता था।
द्रौपदी के पुत्रों को उपपांडव कहते थे।
श्लोक 18:
तान्संख्यान्हृषीकेशो देवदत्तं धनञ्जयः।
पाञ्चजन्यं हृषीकेशो भीमकर्मा वृकोदरः॥18॥
अर्थ : हृषीकेश (कृष्ण) ने पाञ्चजन्य बजाया, अर्जुन ने देवदत्त और भीम ने अपना शंख बजाया।”
रोचक विवरण: समुद्र मंथन ने पाञ्चजन्य शंख बनाया था।
भयानक ध्वनि वाले भीम शंख का नाम ‘पौण्ड्र’ था।
श्लोक 19:
स घोषो धार्तराष्ट्राणां हृदयानि व्यदारयत्।
नभश्च पृथिवीं चैव तुमुलो व्यनुनादयन्॥19॥
अर्थात्: भयानक शंखध्वनि ने कौरवों के हृदय को चीर डाला।”
योग्यता: पांडवों की शंखध्वनि से कौरव सेना डर गई।
यहाँ शब्द “हृदयानि व्यदारयत्” बताता है कि कौरवों का मनोबल पहले से ही टूट गया था।
श्लोक 20
अर्जुन उवाच:
सेनयोरुभयोर्मध्ये रथं स्थापय मेऽच्युत।
यावदेतान्निरीक्षेऽहं योद्धुकामानवस्थितान्॥20॥
अर्थात् :”हे अच्युत (कृष्ण)! कृपया मेरे रथ को दोनों सेनाओं के ठीक बीच में खड़ा करो, ताकि मैं युद्ध के लिए उत्सुक इन खड़े हुए योद्धाओं को ठीक से देख सकूँ.”