भगवद्गीता अध्यायवार सार (18 अध्याय)

भगवद्गीता क्यों दी गई? (कृष्ण ने अर्जुन को यह उपदेश क्यों दिया?)

भगवद्गीता , महाभारत के युद्ध में जब अर्जुन अपने ही परिवार और गुरुओं को युद्धभूमि में देखकर मोह और दुःख में डूब गए, तब श्रीकृष्ण ने उन्हें गीता का ज्ञान दिया। इसका मुख्य कारण था:

  • अर्जुन का मोह दूर करना: अर्जुन युद्ध छोड़कर भागना चाहते थे, लेकिन कृष्ण ने उन्हें समझाया कि “कर्म करना ही धर्म है, परिणाम की चिंता नहीं।”
  • धर्म की स्थापना: अधर्म (दुर्योधन) के विरुद्ध धर्म (पांडवों) की रक्षा के लिए युद्ध आवश्यक था।
  • जीवन का सच समझाना: कृष्ण ने बताया कि आत्मा अमर है, शरीर नश्वर है। इसलिए मोह त्यागकर कर्तव्य (धर्मयुद्ध) करना चाहिए।
भगवद्गीता

📖 भगवद्गीता: अध्यायवार सार (18 अध्याय)

अध्यायनाममुख्य शिक्षा
1अर्जुनविषादयोगअर्जुन का मोह, युद्ध से विरक्ति
2सांख्ययोगआत्मज्ञान, निष्काम कर्म
3कर्मयोगकर्म करो, फल की चिंता मत करो
4ज्ञानकर्मसंन्यासयोगज्ञान और कर्म का संतुलन
5कर्मसंन्यासयोगकर्म से मुक्ति कैसे?
6ध्यानयोगध्यान और मन की शांति
7ज्ञानविज्ञानयोगभगवान के दिव्य स्वरूप का ज्ञान
8अक्षरब्रह्मयोगमोक्ष प्राप्ति का मार्ग
9राजविद्याराजगुह्ययोगभक्ति का महत्व
10विभूतियोगईश्वर की विभूतियाँ
11विश्वरूपदर्शनयोगकृष्ण का विराट रूप
12भक्तियोगभक्ति के प्रकार
13क्षेत्रक्षेत्रज्ञविभागयोगशरीर और आत्मा का ज्ञान
14गुणत्रयविभागयोगसत्त्व, रजस, तमस
15पुरुषोत्तमयोगपरमात्मा का स्वरूप
16दैवासुरसंपद्विभागयोगदैवी और आसुरी प्रवृत्तियाँ
17श्रद्धात्रयविभागयोगसात्विक, राजसिक, तामसिक भोजन और आचरण
18मोक्षसंन्यासयोगअंतिम उपदेश: सर्वधर्म का सार

गीता का सरल संदेश – जीवन में कैसे उपयोगी है?

🔹 कर्म करो, फल की चिंता मत करो। (अध्याय 2)
🔹 ईश्वर पर श्रद्धा रखो, वह सबका ध्यान रखता है। (अध्याय 9)
🔹 मन को नियंत्रित करो – यही सच्चा योग है। (अध्याय 6)
🔹 सच्चा भक्त वही है जो सुख-दुःख में समान रहता है। (अध्याय 12)

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हनुमान जी ने क्यों कहा – “मैं भक्ति के बिना नहीं विराजूँगा!

एक दिन श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा:
“हे अर्जुन! तुम्हारे रथ के ऊपर हनुमान जी का चिह्न लगना चाहिए, इससे तुम्हारी विजय निश्चित होगी।”

अर्जुन ने आश्चर्य से पूछा:
“प्रभु, हनुमान जी तो रामायण काल के हैं, वे अब कहाँ मिलेंगे?”

श्रीकृष्ण मुस्कुराए और हनुमान जी को याद किया।
तभी हनुमान जी प्रकट हुए और बोले:
“प्रभु, मुझे क्या आज्ञा है?”

कृष्ण ने कहा:
“पवनपुत्र! तुम अर्जुन के रथ के ध्वज पर विराजो, इससे उसका मनोबल बढ़ेगा।”

तब हनुमान जी ने एक शर्त रखी:
“प्रभु, मैं केवल भक्ति के बल पर ही किसी के रथ पर विराजता हूँ। अर्जुन आप पर पूर्ण श्रद्धा रखते हैं, इसलिए मैं उनके रथ पर रहूँगा। लेकिन यदि कभी उनकी भक्ति में कमी आई, तो मैं तुरंत चला जाऊँगा!”

कृष्ण ने हँसते हुए कहा:
“तथास्तु!”|

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युद्ध के अंत में क्या हुआ? हनुमान जी चले गए?

जब कौरवों की हार हुई और अर्जुन विजयी हुए, तब अर्जुन के मन में थोड़ा अहंकार आ गया।
उसी समय हनुमान जी ने कहा:
“अर्जुन! अब तुम्हारी भक्ति में कमी आ गई है, इसलिए मैं जा रहा हूँ।”

इतना कहकर हनुमान जी अदृश्य हो गए!
तभी अर्जुन का रथ भस्म हो गया, क्योंकि उसकी शक्ति हनुमान जी के कारण ही थी।

कृष्ण ने अर्जुन को समझाया:
“देखो अर्जुन! यह रथ तो हनुमान जी की कृपा से ही सुरक्षित था। भक्ति के बिना सब कुछ नष्ट हो जाता है।”

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