“I bow to the Lord Vasudeva (श्रीकृष्ण / विष्णु)” — यह द्वादशाक्षर मंत्र है।
3
ॐ श्री विष्णवे च विद्महे वासुदेवाय धीमहि तन्नो विष्णुः प्रचोदयात्
ಓಂ ಶ್ರೀ ವಿಷ್ಣವೇ ಚ ವಿಡ್ಮಹೇ ವಾಸುದೇವಾಯ ಧೀಮಹಿ ತನ್ನೋ ವಿಷ್ಣುಃ ಪ್ರಚೋದಯಾತ್
Om Shri Vishnave cha Vidmahe Vāsudevāya Dhīmahi, Tanno Vishnuh Prachodayat
विष्णु गायत्री मंत्र: “हम भगवान विष्णु (नारायण / वासुदेब) के दिव्य स्वरूप पर ध्यान करते हैं, और उनसे हमारी बुद्धि को प्रकाशित करने की प्रार्थना करते हैं।”
“मैं भगवान विष्णु को प्रणाम करता/करती हूँ, जो शांत-स्वभाव वाले हैं, सर्प (शेष) पर विश्राम करते हैं, जिनकी नाभि में कमल है, जो देवताओं के स्वामी हैं, जो आकाश के समान सर्वव्यापी हैं, मेघ जैसी रंगत वाले हैं, सौंदर्ययुक्त हैं, लक्ष्मी के प्रिय, कमलनयन हैं, योगियों द्वारा ध्यान योग्य हैं; और जो संसार के भय को हराने वाले एवं सभी लोकों के एकमात्र स्वामी हैं।”
5
हरि ओम विष्णवे नमः
ಹರಿ ಓಂ ವಿಷ್ಣವೇ ನಮಃ
Hari Om Vishnave Namah
“हरि (विष्णु) को नमस्कार / सलाम।” सरल, मूलभूत विष्णु मंत्र।
ಓಂ ಕೃಷ್ಣಾಯ ವಾಸುದೇವಾಯ ಹರೇ ಪರಮಾತ್ಮನೇ ಪ್ರಣತ ಕ್ಲೇಶನಾಶಾಯ ಗೋವಿಂದಾಯ ನಮೋ ನಮಃ
Om Krishnaya Vāsudevāya Haraye Paramātmane, Praṇata Kleśanāśāya Govindāya Namo Namah
“हे कृष्ण, वासुदेव (वासुदेव), हरि, परमात्मा — मैं समर्पित हूँ; मेरे क्लेश (दुःख) नष्ट करने वाले गोविंद को बार-बार प्रणाम।” — यह मंत्र दुःख निवारण और समर्पण को दर्शाता है।
7
मङ्गलम् भगवान विष्णुः मङ्गलम् गरुडध्वजः मङ्गलम् पुदारीकाक्षः मङ्गलाय तनो हरिः
ಮಂಗಳಂ ಭಗವಾನ್ ವಿಷ್ಣುಃ, ಮಂಗಳಂ ಗರುಡಧ್ವಜಃ, ಮಂಗಳಂ ಪುಂದರೀಕಾಕ್ಷಃ, ಮಂಗಳಾಯ ತನೋ ಹರಿಃ
“मंगल हो भगवान विष्णु को, मंगल हो गरुड़ ध्वजधारी को, मंगल हो कमलनयन को, मंगल हो हमारे हरि का यह स्वरूप।” — एक मंगल स्तुति।
8
ॐ विष्णवे नमः
ಓಂ ವಿಷ್ಣವೇ ನಮಃ
Om Vishnave Namah
“मैं विष्णु को नमस्कार करता/करती हूँ।” बहुत ही सरल और शक्ति-पूर्ण मंत्र।
9
ॐ नमोः श्री नारायणाय
ಓಂ ನಮೋಃ ಶ್ರೀ ನಾರಾಯಣಾಯ
Om Namo Shri Narayanaya
“मैं श्री नारायण (विष्णु) को नमन करता हूँ।” इसमें श्री का सम्मान भी जुड़ा है।
10
श्री वैष्णव प्रणाम मंत्र (श्रद्धा के साथ सारा समर्पण) – “करो शरणागत स्वामी”; (संक्षिप्त रूप): करो शरणागत स्वामी, त्रिभुवनापार स्वामी…
ಶ್ರೀ ವೈಷ್ಣವ ಪ್ರಣಾಮ ಮಂತ್ರ – “ಶರಣಾಗತ ಸ್ವಾಮಿ”
“Karo Sharanagat Swami …” (a prayer of total surrender)
यह प्रणाम मंत्र है, जिसमें भक्त पूरी तरह भगवान विष्णु को अपनी शरण में समर्पित करता है, “तीनों लोकों के स्वामी” के रूप में। (यह मंत्र विभिन्न वैष्णव परंपराओं में अलग-अलग रूपों में आता है)।